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प्राणी मात्र को भवसागर से पार उतारती है भागवत महापुराण पण्डित दीपक उपाध्याय शीतला माता महिला मंडल द्वारा आयोजित भागवतकथा के अवसर पर कहा


शीतला माता महिला मण्डल के तत्वाधान में सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन मालवा के संत महिदपुर के महुखोरा आश्रम लासुडीया मंसूर से पधारे भागवताचार्य पण्डित दीपक जी उपाध्याय  के मुखारविंद से किया जा रहा है जिसके तहत शनिवार को दोपहर में आयोजन समिति द्वारा पोथी यात्रा निकाली गई जिसमें भागवत भक्तो ने भाग लिया यह यात्रा कथा स्थल पर पहुंची जहा पोथी का विधिवत पूजन कर कथा प्रारंभ की गई नगर में पोथी का पूजन वार्ड पार्षद अशोक खींची, एवं जिला योजना समिति सदस्य अनिल भरावा ने किया जहा कथा का प्रारंभ करते हुवे श्री उपाध्याय ने भागवत की महिमा  समझाते हुवे कहा कि यह एक ऐसा ग्रन्थ है जिसको सुनने से जीव भवसागर से पार उतर जाता है यह मुक्ति के मार्ग को बताती है ओर पापो का नास करने वाली है उन्होंने नाम की महिमा का वर्णन करते हुवे बताया कि राम से बड़ा राम का नाम जिनके नाम से ही पानी में पत्थर तेर गए थे अतः हमें राम नाम से विमुख नहीं होना चाहिए उन्होंने भागवत कथा जा प्रारंभ करते हुवे बताया कि आत्मदेव नाम के एक ब्राह्मण थे उनकी पत्नी का नाम धुंधली था जो बड़ी ही कर्कशा थी उनके सन्तान नहीं थी जिस पर वे हमेशा मलाल करते रहते थे एक दिन वे इससे दुःखी होकर  की सन्तान हिन होने से  मर जाना अच्छा है इन भावों को लेकर  वे जंगल में चले गए और ईश्वर को पुकारते हुवे बोले कि मुझे सन्तान नहीं हुई तो में अपने प्राण त्याग दुगा इस पर एक महात्मा वहा आए ओर उनके दुखी होने का कारण पूछा जिस पर उन्होंने सरा वृतांत बताया जहा महात्मा द्वारा उन्हें एक फल दिया गया कि तुम यह फल अपनी पत्नी को जाकर खिला देना जिससे तुम्हें संतान की प्राप्ति होगी आत्म देव बड़े प्रसन्न हुए और महात्मा जी द्वारा दिए गए फल को  लेकर उन्होंने अपनी पत्नी धूधली को दिया धुंधली बड़ी आलसी प्रवृत्ति की थी उसने सोचा कि यह फल खाने से मेरे पेट में गर्भ आ जाएगा और 9 महीने तक मुझे तकलीफ भी देखना पड़ेगी इसलिए उसने अपनी बहन जोकि गर्भवती थी उससे कहा कि तू मुझे तेरा पुत्र दे देना इसके बदले में मैं तुझे बहुत सा धन दूंगी और मैं गर्भवती होने का नाटक करूंगी और वह फल उसने अपनी गाय को खिला दिया 9 महा बाद धूधली की बहन ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसे उसने अपनी बहन धुंधली  को दे दिया और जिस गाय को वह फल दिया था उसने भी एक अद्भुत बालक को  जन्म दिया जिसका शरीर तो मनुष्य जैसा था और उसके कान गाय जैसे थे अतः दोनों का नामकरण किया गया दूंधली के पुत्र का नाम धुंधकारी एवं गाय जैसे कान होने के कारण गाय के पुत्र का नाम गोकर्ण रखा गया धुंधकारी बचपन से ही गुस्सैल प्रवृति का था वह बड़ा हुआ तो अपने पिता को मारने लगा जिस पर दुःखी होकर वे जंगल में चले गए और गोकर्ण जी भी तीर्थ में चले गए धुंधकारी शराब पीने लग गया और वेश्याओं के चक्कर में पड़ गया और उसने अपना सारा धन लुटा दिया और एक दिन मदिरा के नशे में चूर होकर उसने अपनी मां को भी मार डाला और वेश्याओं को घर में रख लिया अपने आवश्यकता की पूर्ति के लिए एक दिन उसने राजा के यहां चोरी कर ली और चोरी किए धन को वेश्याओं को दे दिया वेश्याओं ने सोचा कि राजा के सैनिक इस चुराए हुवे धन को ढूंढते हुए यहां आयेगे ओर फिर हमें भी इसकी सजा मिलेगी इस पर उन्होंने धुंधकारी के मुंह में जलती हुई लकड़ी डालकर उसे मार डाला और सारा धन लेकर गायब हो गई जब गो करण जी को धुंधकारी की मृत्यु का समाचार प्राप्त हुआ तो उन्होंने विधिवत उनका तर्पण एवं पिंडदान किया और जब घर आए तो उन्हें रात में विचित्र आवाज सुनाई दी जिस पर उन्होंने पूछा कि तुम कौन हो तो उन्होंने बताया कि मैं तुम्हारा भाई धुंधकारी हूं आप मेरा मोक्ष करो इस पर महात्मा गोकर्ण जी द्वारा सात दिवसीय भगवत कथा का आयोजन किया गया जिसके सुनने मात्र से धुंधकारी का मोक्ष हो गया  आज की कथा को यही विश्राम दिया गया इसके पश्चात आरती एवं प्रसादी का वितरण किया गया कार्यक्रम में राकेश बैरागी रामप्रसाद राम सिंह,कालूराम मांगुसिह ,कैलाश प्रजापत,गोरधन खारोल,शंभुलाल माली आदि उपस्थित थे

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