नई दिल्ली महाराष्ट्र के पुणे में एक 10 वीं कक्षा के छात्र ने गेम में अपना टॉस्क पूरा करने के लिए अपनी जान गंवा दी. 15 साल के बच्चे ने सोसायटी की 14 वीं मंजिल से छलांग लगा दी और उसकी मौत हो गई. मृतक छात्र के कमरे से पुलिस को एक कागज मिला, जिसमें लॉगआउट लिखा था. इस बच्चे को घंटो गेम खेलने की आदत थी. दिन में 6 से 7 घंटे वह इसमें गंवा देता था. कुछ साल पहले मध्य प्रदेश में भी एक इसी तरह का केस सामने आया था. 11 वीं कक्षा के छात्र की पब्जी खेलने के दौरान कार्डियक अरेस्ट से मौत हो गई थी. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में दो साल पहले का एक ऐसा ही केस पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज है, जिसमें फोन पर गेम खेलने से मना करने पर बच्चे ने मां की गोली मारकर हत्या ही कर दी थी. ऐसे और भी कई मामले हैं जहां फोन पर गेम खेलना बच्चे की मौत का कारण बना या उसने किसी की जान ले ली. गेम की लत क्यों लग जाती है और इसके बाद ऐसा क्या होता है की बच्चे अपनी जान तक गंवा देते हैं. क्या गेम की लत आत्महत्या करने को मजबूर करती है या इसके पीछे कुछ और कारण है? इसके बारे में एक्सपर्ट्स ने हमें बताया है.गेम की लत क्यों लग रही गाजियाबाद जिला अस्पताल में मनोरोग विभाग में डॉ एके विश्वकर्मा बताते हैं की अब बच्चों का लाइफस्टाइल बदल गया है. वह बाहर खेलकूद के बजाय फोन या लैपटॉप पर समय देना ज्यादा पसंद करते हैं. फोन पर बच्चे गेम खेलते हैं. इस दौरान उन्हें अच्छा महसूस होता है. डोपामाइन ज्यादा रिलीज होने के कारण ऐसा होता है. डोपामाइन एक न्यूरोट्रांसमीटर है. यह दिमाग के एक सेल से दूसरे सेल में सिग्नल भेजता है. यह ट्रांसमीटर हमारे मूड, कामकाज और व्यवहार को कंट्रोल करता है. जिस लोगों में यह ट्रांसमीटर ज्यादा एक्टिव होता है वह खुश रहते हैं. ट्रांसमीटर तब ज्यादा एक्टिव हो जाता है जब आप किसी काम को कर रहे हैं और इसमें आनंद आने लगता है. डोपामाइन को आम भाषा में हैप्पी हार्मोन भी कहते हैं. जब बच्चा लगातार गेम खेलता रहता हैं तो उसके दिमाग में डोपामाइन की एक्टिविटी बढ़ती है. इससे उसको अच्छा महसूस होता है और खुशी मिलती है. गेम खेलने की वजह से अच्छा महसूस होने लगता है. यह खुशी बार-बार गेम खेलने को मजबूर करती है और फिर इसकी लत भी लग जाती है गेम की लत बिगाड़ देती है मेंटल हेल्थ' मनोरोग विशेषज्ञ डॉ हेमा अग्रवाल बताती हैं की गेम की लत का असर धीरे-धीरे बच्चों की मानसिक सेहत पर भी पड़ने लगता है. ऐसा इसलिए क्योंकि इसको खेलने के दौरान उसका बाकी किसी काम में मन नहीं लगता है. वह अकेले रहने लगता है और असल जिंदगी से कट जाता है. इससे मानसिक सेहत बिगड़ती है. बच्चा गेम की दुनिया में इस कदर खो जाता हैं कि बाहरी दुनिया को भी गेम का हिस्सा मानने लगते हैं. इस दौरान उसके व्यवहार में भी बदलाव आने लगता है. वह लोगों से मिलना कम कर देता है. बाहर कम जाता है और अपना अधिकतर समयगेम खेलने में ही बिताता है. इस दौरान बच्चा असली दुनिया को भी गेम का संसार मानने लगता है और जो कमांड उसको गेम में मिलती है उसे वह अपनी जिंदगी में फॉलो करने लगता है. गेम से खराब हुई मेंटल हेल्थ के कारण कुछ मामलों में बच्चे की सोचने समझने की शक्ति भी कम हो जाती है. इसी वजह से बच्चे या तो किसी को नुकसान पहुंचाते हैं या खुद की जान जोखिम में डालते हैं कैसे पता चलता है बच्चे को गेम की लत लग गई है बाहर न जाकर गेम ही खेलना किसी भी बात पर गुस्सा होना आसपास घरवाले हों तो भी गेम खेलते रहना कम नींद आन माता-पिता क्या कर सकते हैं: बच्चे के व्यवहार पर नजर रखें उसके गेम खेलने के नुकसान के बारे में बताएं बच्चे को बाहर खेलने लेकर जाएं माता-पिता खुद भी बच्चे के सामने फोन का कम यूज करें
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