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आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज का पूरा जीवन वैराग्य और त्यागमय रहा मुनिश्री सुप्रभ सागर शताब्दी वर्ष महोत्सव का हुआ आगाज

सिंगोली । आज जो जैन धर्म में दिगम्बरत्व की पताका चारो ओर फहरा रही है, उसका पूरा श्रेय परम पूज्य चारित्र चक्रवर्ती प्रथमाचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज कोही जाता है। कहा जाता है कि महापुरुषों के जन्म के पूर्व धरती पर उनके आने के संकेत हो जाती है। जैसे तीर्थंकरों के | माता के गर्भ में आने से पूर्व माता को शुभ स्वप्न आते है, उसी प्रकार आचार्य महाराज जी गृहस्थ जीवन की माता को भी शुभ स्वप्न और शुभ दोहला हुआ था। वह शुभ दोहला इस बात का ही संकेत था कि कोई महान व्यक्तित्व इस धरा पर जन्म लेने वाला है। बालक सात गौडा बचपन से बुद्धि सम्पन्न और सर्व कला प्रवीण थे। शारीरिक बल इतना था कि चार बैलों से खींची जाने वाले पानी निकालने की मोठ वे अकेले खिच लेते थे। पूरा ग्राम में उनसे कुश्ती में जीतने वाला कोई नहीं था। वे बचपन से खेल से अधिक रुचि धर्म में रखते थे। ऐसे विरले ही नररत्न होते हैं, जो धर्म को जीवन में अंगीकार कर धर्म के पर्याय बन जाए। आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज का पूरा जीवन वैराग्य और त्यागमय रहा। यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 24 अक्टूबर मंगलवार को प्रातः काल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि दया, करुणा, प्रेम वात्सल्य इतना था कि मनुष्य क्या पशु भी उससे वंचित नहीं रहा। आचार्य श्री जी ने त्याग मार्ग अपना कर हम जैसों के लिए मोक्षमार्ग सरल और सुलभ कर दिया।किसी ने कहा भी है कि आचार्य श्री जी यदि नहीं होते, तो दिगम्बर श्रमण परम्परा का अन्त समान हो जाता उसके गुणों को कहने का अर्थ है सूर्य सदृश्य व्यक्तित्व को दीपक दिखाना । आज की परिचर्चा के माध्यम से हमने उनके गृहस्थ जीवन वंश परम्परा, व्रती जीवन, उनके द्वारा प्रदत्त दीक्षाओं तथा उनके द्वारा किए व्रत उपवास के करे में जाना। उनका व्यक्तित्व इतना बड़ा है कि उन्हें कुछ  शब्दों और सीमित समय में बांधना कठिन है, फिर भी वक्ताओं ने पुरुषार्थ कर उसे कम शब्द, व समय में बांधा। आचार्यश्रीजी का जीवन संयमी जीवों के लिए ही नहीं श्रावकों के लिए भी एक प्रकाश स्तम्भ है वही कार्यक्रम के शुरुआत मे सर्व प्रथम मंगलाचरण भारती हरसोला व चित्र अनावरण व दिप प्रजलन मुनिश्री को शास्त्र दान का सौभाग्य बिजोलिया समाज को मिला व उसके बाद आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज कि संगीतमय पुजन व आचार्य श्री के अर्ध बिजोलिया महिला मण्डल द्वारा चढ़ाया गया व उसके बाद आचार्य श्री के जीवन पर परिचर्चा प्रारंभ हुआ जिसमे जिसमें अलंग अलग वक्ताओं ने उनके जीवन पर गुणगान किया वही 25 अक्टूबर बुधवार को प्रातः काल 8 बजे मंगलाचरण चित्र अनावरण दिप प्रजलन 8:10 बजे 100 वे आचार्य पदारोहण दिवस पर परम पूज्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज कि संगीतमय महापुजन 8:45 मुनिश्री को शास्त्र दान 8:50 बजे परिचर्चा व आचार्य श्री जी का दक्षिण -भारत मे प्रभाव मे दक्षिण भारत विहार व अन्य विषय पर अलग अलग वक्ताओं द्वारा परिचर्चा होती व सायं काल संगीतमय महा आरती व चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज के जीवन पर आधारित नाटक होगा वही  बाहर से आने वाले सभी अतिथियों का समाज द्वारा तिलक माला व दुपट्टा पहनाकर स्वागत किया गया इस अवसर पर मेवाड़ प्रान्त के अध्यक्ष लाभचन्द पटवारी जन्बु कुमार अजमेरा भगवतीलाल मोहिवाल  बिजोलिया नीमच छोटी बिजोलिया धनगाव थडोद झांतला बोराव आरोली व अन्य नगरों के समाजजन उपस्थित थे

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