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संगीता नायक ने एक साथ शिक्षक भर्ती रीट और फर्स्ट ग्रेड इतिहास में अपना परचम लहराया बारिश की बूंदें भले ही छोटी हों लेकिन उनका लगातार बरसना बड़ी नदियों का बहाव बन जाता है वैसे ही हमारे छोटे छोटे प्रयास भी जिंदगी में बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं- संगीता नायक

निम्बाहेड़ा लगन और जस्बा हो तो दिव्यांगता आड़े नहीं आती है। बस अवसर को जरूरत होती है। यही बात साबित की है मेवाड़ की बेटी संगीता नायक ने अपने बुजुर्ग माता पिता की दिव्यांग संतान संगीता नायक जन्म से कुछ दिनों के बाद ही खाट पकड़ने को और घुटनों के बल रेंगने को मजबूर हो गई रहने के लिए मात्र एक चद्दर का कच्चा मकान फिर भी संगीता ने बिना कोई साधन अपने सपनो पर डटी रही सोच लिया जीना तो हर हाल में है जैसे तैसे 2006 में 10वीं परीक्षा पास की, 2008 में 12वीं परीक्षा पास को 2009 में बी.ए. की परीक्षा पास की. विद्यालय जीवन संगीता का काटो से भरा था जीवन में बहुत परेशानिया आने जाने के लिए साधन नाम की कोई बोज नहीं।_ _2012-13 में जैसे तैसे b.ed की परीक्षा उतीर्ण की और सोच लिया कुछ करके दिखाना है। दिव्यांग क्षेत्र में भी संगीता ने बहुत से कार्य किये।_खुद दिव्यांग होने के बाद में पैरा गेम्स में भी *संगीता पीछे नहीं हटी इसमें संगीता ने जयपुर में आयोजित टूनामेंट में मैडल प्राप्त किया आज भी संगीता के पास ट्रॉयसाइकल तक नहीं है लेकिन अपने जज्बे से 8 साल की कड़ी मेहनत और लगन से रिट और फर्स्ट ग्रेट इतिहास विषय में मेरिट में अपना स्थान बनाकर भर्ती परीक्षा में अपना परचम लहराया। दिव्यांग सेवा के लिए 2022 में राजस्थान सरकार के द्वारा संगीता को सम्मानित भी किया गया सभी दिव्यांग भाई बहनो के लिए संगीता का एक ही संदेश है यदि दिव्यांग व्यक्ति भी अपने मन में कुछ करने की ठान लेता है तो यह भी जीवन में उच्च लक्ष्यों को प्राप्त करके समाज के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन सकता है हमें दिव्यांग व्यक्तियों का हमेशा मनोबल बढ़ाने की दिशा में कार्य करना चाहिए बारिश की बूंदें भले ही छोटी हों लेकिन उनका लगातार बरसना बड़ी नदियों का बहाव बन जाता है वैसे ही हमारे छोटे छोटे प्रयास भी जिंदगी में बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं- संगीता नायक

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